राजस्थानी भाषा एवं बोलियाँ – सम्पूर्ण जानकारी
राजस्थान की भाषाएँ यहाँ की सांस्कृतिक विरासत और इतिहास की प्रतिच्छाया हैं। इस लेख में हम राजस्थानी भाषा की उत्पत्ति, विकास, लिपियाँ, प्रमुख बोलियाँ, शैलियाँ और भाषायी विभाजन को समझेंगे — संक्षेप में और शिक्षाप्रद तरीके से।
राजस्थान की प्रमुख भाषा और राज्य भाषा
प्रमुख भाषा: राजस्थानी । राजकीय भाषा: हिन्दी ।
मायड़ भाषा: राजस्थानी — मायड़ भाषा दिवस: 21 फरवरी।
राजस्थानी भाषा की उत्पत्ति एवं विकास
राजस्थानी की उत्पत्ति सामान्यतः गुर्जर अपभ्रंश / मारु गुर्जरी से मानी जाती है। शोधकर्ताओं के भिन्न मत हैं — जिनमें जॉर्ज ए. ग्रियर्सन (नागर अपभ्रंश), एल.पी. टेस्सीटॉरी (शौरसेनी अपभ्रंश) और भारतीय भाषाविदों के योगदान प्रमुख हैं।
स्वर्णकाल: लगभग 1150 ई. (12वीं सदी) से 1850 ई. (19वीं सदी)।
भाषाई विकास क्रम (वंशवृक्ष):
पाली → वैदिक संस्कृत → प्राकृत (शौरसेनी, मागधी) → अपभ्रंश (गुर्जर, शौरसेनी) → हिन्दी, राजस्थानी, गुजराती आदि।
राजस्थानी भाषा की लिपियाँ
परंपरागत रूप से राजस्थानी के लेखन के लिए मुड़िया, महाजनी और बणियावटी लिपियों का प्रयोग होता था। ये व्यापारिक और स्थानीय लेखन में प्रयुक्त रीतियाँ रहीं। कुछ शोधों में टोडरमल का नाम इन लिपियों के आविष्कार से जोड़ा गया है।
प्रमुख शोधकर्ता एवं वर्गीकरण
शोधकर्ता | वर्गीकरण / उल्लेख |
---|---|
जॉर्ज अब्राहम ग्रियर्सन | 5 भाग: पश्चिमी, उत्तर-पूर्वी, दक्षिण-पूर्वी, दक्षिण, मध्यपूर्वी (Linguistic Survey of India) |
एल.पी. टेस्सीटॉरी | 2 भाग: पश्चिमी (मारवाड़ी), पूर्वी (ढूंढाड़ी) |
नरोत्तमदास स्वामी | 4 भाग: पश्चिमी, पूर्वी, उत्तरी, दक्षिणी |
मोतीलाल मेनारिया | 5 भाग: मारवाड़ी, मालवी, वागड़ी, ढूंढाड़ी आदि |
राजस्थानी की मुख्य बोलियाँ (1961 जनगणना के अनुसार)
कुल मिलाकर 60+ से अधिक बोलियाँ रिकॉर्ड हैं; प्रमुखों में मारवाड़ी, मालवी, मेवाती, वागड़ी, ढूंढाड़ी शामिल हैं।
भाषिक शैलियाँ
डिंगल शैली: चारण साहित्य, वीर रस प्रधान — प्रसिद्ध छंदों और गाथाओं के लिये जानी जाती है।
पिंगल शैली: भाट और भक्ति साहित्य में प्रयुक्त, श्रृंगार व भक्ति रस प्रमुख।
प्रमुख बोली — क्षेत्रवार विवरण (संक्षेप)
मारवाड़ी: जोधपुर, बीकानेर, जैसलमेर, नागौर, गंगानगर सहित कई जिलों में बोली जाती है; मानक बोली के रूप में जानी जाती है।
मेवाड़ी: उदयपुर, राजसमंद, चित्तौड़गढ़ क्षेत्र।
ढूंढाड़ी: जयपुर, दौसा, टोंक — प्राचीन नाम झाड़शाही / जैपरी।
हाड़ौती: कोटा, बूंदी, बारां — उच्चारण में जटिलता।
वागड़ी: डूंगरपुर, बांसवाड़ा — गुजराती प्रभाव।
मेवाती: अलवर, भरतपुर — पूर्वी राजस्थान के निकटवर्ती क्षेत्र।
मालवी: झालावाड़, नीमच, रतलाम आदि — मधुर व कर्णप्रिय बोलियाँ।
राजस्थानी भाषा का शब्दकोष और साहित्यिक योगदान
सीताराम लालस जैसे विद्वानों ने हिन्दी–राजस्थानी शब्दकोष और अन्य महत्वपूर्ण ग्रंथ लिखे। राजस्थानी साहित्य में मीराबाई, चारण और भाट परंपराओं का समृद्ध योगदान रहा है।
निष्कर्ष
राजस्थानी भाषा अनेक बोलियों और शैलियों का मिश्रण है जो भौगोलिक और सामाजिक विविधताओं का दर्पण है। संरक्षण, शैक्षिक समावेशन और डिजिटल अवमूल्यन (digitization) से यह भाषा आने वाली पीढ़ियों में जीवित रहेगी।
FAQs
Q: राजस्थानी भाषा की उत्पत्ति कहाँ मानी जाती है?
A: आमतौर पर गुर्जर अपभ्रंश / मारु गुर्जरी से।
Q: राजस्थानी भाषा दिवस कब मनाया जाता है?
A: 21 फरवरी।
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